|| त्रिपिंडी श्राध्द क्यों और कैसे करें ? ||
पितृ दोष की शान्ति एवं पितृ प्रसन्नता का शास्त्रीय उपाय
श्राद्ध – तर्पण क्यों करें ?
प्रत्येक मनुष्य के पितृ देवता होते ही है ! माता-पिता विद्यमान हो तब भी
माता-पिता के भी “मृतक पूर्वज” भी पितृ देवता ही है ! अतः पितृ देवताओं की
प्रसन्नता के लिए श्राध्द एवं तर्पण की क्रियाएँ करनी ही चाहिए ! इसके अतिरिक यदि संभव हो तो नित्य देव तर्पण , ऋषि तर्पण, पितृ तर्पण आदि भी करना चाहिए !
मृतक पूर्वजों का अंतिम संस्कार ठीक नही हुआ तो उनको “ प्रेत योनी ” प्राप्त होती है ! पितरों के निमित्त श्राध्द – तर्पण न करें , तब भी “ पितृदोष” उत्पन्न होता है ! श्राध्द -तर्पण की क्रियाएँ भी विधिवत न हुई हो तो भी पितृदोष उत्पन्न होता है ! पितृदोष का दुष्परिणाम अत्यंत कष्टकारक होता है ! अचानक विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होना , घर में क्लेश बना रहना , संतान कुमार्गगामी हो जाना , विवाह की आयु होने पर भी संतान का विवाह न होना , अचानक दुर्घटनाए होना , आवक अच्छी होने पर भी घर में घन और धान्य की कमी रहना आदि अनेक दोष इसी पितृदोष के कारण उत्पन्न होते है ! प्रेतबाधा होना भी पितृदोष का ही दुष्परिणाम होता है ! अतृप्त पूर्वज प्रेतयोनी की अधोगति को प्राप्त हो जाते है और अपने वंशजों को कष्ट पहुचातें है !
अतः पितृओ के निमित्त श्राध्द – तर्पण करना
प्रत्येक गृहस्थ का दायित्व और कर्त्तव्य है ! इस कर्तव्य से विमुख गृहस्थ अपने
गृहस्थ जीवन में कष्ट पाता ही है ! मैंने अपने जीवन में अनेक पीड़ितों के जीवन में
यह सब प्रत्यक्ष अनुभव किया है !
पितृ देवता यदि प्रसन्न हो तो वे कुल की रक्षा करते है , व्यापार आदि में सफलता मिलती है , विघ्न दूर होते है , सूक्ष्म रूप से उनका
आशीर्वाद प्राप्त होता है , संतान सन्मार्गी बनी रहती है, घर में धन -धान्य की
वृध्दि बनी रहती है !
श्राद्ध – तर्पण का अधिकार किसे है ?
कुल परिवार से जुड़ें हुए अथवा आत्माओं के उध्दार की कामना रख्नेवालें किसी
भी व्यक्ति को श्राध्द -तर्पण करने का अधिकार है ! परन्तु मुख्य रूप से घर
के मुख्य व्यक्ति को यह पितृ कर्म करना चाहियें ! यदि मुख्य व्यक्ति अपने
कर्त्तव्य से भ्रष्ट हो जाता है , वह यदि श्राद्ध तर्पण नही करता है तो परिवार के किसी भी अन्य व्यक्ति को
भी श्राध्द – तर्पण करने का अधिकार प्राप्त है ! किसी भी आत्मा की सद्गति के लिए
श्राध्द आदि कर्म करना एक पवित्र और पुण्य कर्म है ! अतः यह अधिकार सभी को प्राप्त
है ! अपने माता पक्ष के मामा , नानी आदि के लिए भी श्राद्ध कर
उनका उध्दार कर सकते है , जामाता आदि भी अपने श्वसुर का उध्दार कर सकता है ! शास्त्रों में इसका वर्णन
है और तर्क आदि से भी यह सिद्ध है !
त्रिपिंडी श्राद्ध किसके लिए करें ?
त्रिपिंडी श्राध्द में समस्त पितृओ के निमित्त श्राध्द किया जाता है!
जिनका गोत्र अथवा नाम आदि का पता न हो उनके लिए भी ” त्रिपिंडी श्राद्ध ” का विधान
है ! वर्ष में कम से कम ३ बार त्रिपिंडी श्राध्द करना चाहिए ! प्रत्येक अमावस्या को भी यह
श्राद्ध कर सकते है ! संभव हो तो तीर्थस्थल पर ही “ त्रिपिंडी श्राद्ध “ करें
! इस प्रकार के आचरण करनेवाला गृहस्थ अपने
पितृओं का आशीर्वाद प्राप्त कर सुख और शांति का जीवन जीता है !
क्यों करें त्रिपिंडी श्राद्ध ?
त्रिपिंडी श्राद्ध काम्य श्राध्द है। लगातार तीन वर्ष तक जिनका श्राध्द न
किया गया हो,
उनको प्रेतत्व
प्राप्त होता है। अमावस्या पितरों की तिथि है। इस दिन त्रिपिंडी अथवा एकोदिष्ट श्राध्द करें।
प्रेतयोनियो को प्राप्त पितृओ की पीडा के निवारण हेतु त्रिपिंडी श्राध्द किया जाता
है। अनेक वर्ष तक पितरों का विधी पूर्वक श्राध्द न होने से पितरों को प्रेतत्व
प्राप्त होता है। श्राध्द न करने से
होनेवाले दोष त्रिपिंडी श्राध्द से समाप्त होते है। जैसे भूतबाधा,प्रेतबाधा,गंधर्व, राक्षस, शाकिनी आदि दोष दूर
करने के लिए त्रिपिंडी श्राध्द करने की प्रथा है| घर में कलह, अशांती,बिमारी,अपयश,अकाल मृत्यु , विवाह समय पर न होना,संतान न होना इस सब को “पितृ दोष” कहा जाता है। इन
दोषों के निवारण के लिए “त्रिपिंडी श्राध्द” किया जाता है ! यह पुजा सभी अतृप्त
आत्माओंके मोक्ष प्राप्ती के लिए की जाती है।
आश्रम की ओर से शास्त्रीय पध्दति से और विद्वतजनों के द्वारा ” त्रिपिंडी श्राद्ध ” की व्यवस्था वाराणसी अथवा हरिद्वार जैसे तीर्थस्थल पर करा दी जाती है !
सुचना : श्राद्ध के समय श्राद्धकर्ता उपस्थित न हो सकें तो गोत्र, माता -पिता का नाम आदि का संकल्प में उल्लेख कर भी विद्वतजन यह कर्म कर सकते है ! हमारे अनुभव में इसी प्रकार से श्राद्ध कर्म करने से भी अनेक श्रध्दालुओं के सुखद अनुभव आये है !
त्रिपिंडी श्राध्द दक्षिणा : 11,100 /- Rs.
दिनांक : आगामी अमावस्या
प्रत्येक अमावस्या को हरिद्वार तीर्थस्थल में गंगा तट पर आश्रम की ओर से " त्रिपिंडी श्राध्द " कराया जाता है !
( पूजन सामग्री और पुरोहित दक्षिणा सहित )
महत्वपूर्ण सुचना : नारायण बलि आदि, कर्मकांड हरिद्वार में स्वामी रुपेश्वरानंद आश्रम की ओर से विद्वान पुरोहितों के माध्यम से कराया जाता है ! वर्तमान समय और परिस्थिति को देखते हुए यह कर्मकांड संकल्प आदि के माध्यम से किया जाता है , यज्ञमान को इस कर्मकाण्ड में प्रत्यक्ष भाग लेने की आवश्यकता नही होती है ! हमारे अनुभव में इस प्रकार के पूजन से , संकल्प से दुर्गति अथवा प्रेत योनी को प्राप्त को आत्माओं की मुक्ति के यज्ञमानों द्वारा अनुभव प्रमाण सामने आये है ! अतः इस प्रकार से संकल्प द्वारा भी सद्गति होना अनुभवसिद्ध है ! इसलिये ऑनलाइन पंजीकरण से भी इस कर्मकाण्ड को किया जा रहा है ! इस विषय में जिनको शंका अथवा अश्रध्दा हो , वे पंजीकरण न करें ! अश्रध्दा और शंका के भाव से किये गए कर्म का फल शुभ नही होता ! स्वामी रुपेश्वरानंद जी के मार्गदर्शन में किये जा रहे अनुष्ठान , उपासना, कर्मकांड आदि से अनेक श्रध्दालुओं को लाभ हो रहे है और उसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी उपलब्ध है ! फिर भी आश्रम की ओर से किसी को बाध्य नही किया जाता है और न ही कोई गारंटी दी जाती है ! केवल जिन्हें श्रध्दा हो , वे भी पंजीकरण करें ! आश्रम की ओर से भी पूर्ण विश्वास और विधि से कर्मकाण्ड संपन्न कराये जाते है !
अधिक जानकारी हेतु संपर्क : WhatsApp No. +91- 7607233230
1 - पंजीकरण के पूर्व महत्वपूर्ण सुचना अवश्य पढ़ें !
2 - पंजीकरण हेतु सन्देश आदि
+91-7607233230 पर भेजें !
3 - पंजीकरण हेतु बैंक खाता ” SWAMI RUPESHWARANAND ” के नाम से अधिकृत है ! पूजन कार्य नॉन - रिफंडएबल है !