|| नारायण बलि पूजन  || 

प्रेतत्व को प्राप्त आत्माओं को सद्गति एवं मुक्ति प्रदान करने का एक सहज – सरल उपाय

भूत-प्रेत से ग्रस्त आत्माओं को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करने का आसान उपाय।

“नारायण बलि” का विधान तब किया जाता है , जब कोई ज्ञात मृतक आत्मा को प्रेतत्व से मुक्ति दिलानी हो ! ज्ञात मृतक आत्मा का अर्थ है , जिसका नाम और गोत्र पता हो तथा उसके मृत्यु का कारण पता हो ! इसके अतिरिक्त जो मृतक आत्मा स्वप्न के माध्यम से बार-2 दर्शन देकर अपने मुक्ति के लिए प्रार्थना करती हो , अथवा जो स्वप्न में कष्ट में होने का संकेत देती हो , उसके निमित्त भी नारायण बलि का विधान बताया गया है !

नारायण बलि का अर्थ है की , किसी प्रेतत्व को प्राप्त ज्ञात आत्मा के निमित्त भगवान नारायण एवं उनके गण , पार्षद आदि का आवाहन , पूजन और तर्पण करना तथा उस आत्मा की मुक्ति अथवा सद्गति की प्रार्थना करना ! एक प्रकार से ” नारायण बलि ” के कर्मकांड से उस प्रेतात्मा को भगवान नारायण के चरणों में समर्पित कर देना , भगवान नारायण को बलि के रूप में प्रदान करने को ” नारायण बलि ” कहते है !

जिस आत्मा नाम , गोत्र पता हो , उसे ” ज्ञात मृतक आत्मा ” कहते है ! उनके निमित नारायण बलि , पार्वण श्राद्ध आदि किये जाते है !


यदि किसी आत्मा का अथवा हमारे अपने पूर्वजों का नाम और गोत्र पता न हो तो उनके निमित्त , उनके उध्दार अथवा तृप्ति के लिए “त्रिपिंडी श्राध्द” आदि किये जाते है ! भगवान विष्णु , भगवान ब्रह्मा , भगवान शंकर के निमित्त तीन पिंड बनाकर उनका पूजन कर , उनके निमित्त तर्पण आदि कर सभी प्रकार की दुर्गति को प्राप्त पूर्वजों की आत्माओं की सद्गति, उनके उध्दार के लिए प्रार्थना की जाती है , इसलिए इस कर्म को ” त्रिपिंडी श्राध्द ” अर्थान तीन पिंड बनाकर किया गया श्राध्द कर्म कहा जाता है !!


जैसे “त्रिपिंडी श्राद्ध” का महत्त्व है , उसी प्रकार से ” नारायण बलि ” का भी महत्त्व है ! जिसे भी अपने ज्ञात अथवा अज्ञात पूर्वजों की सद्गति करनी हो , उनको प्रेतत्व से मुक्त करना हो , उनके निमित नारायण बलि , त्रिपिंडी श्राध्द आदि कर्म करना चाहिए ! प्रत्येक गृहस्थ को अपने घर परिवार में सुख – शांति हेतु यह कर्म कराना चाहिए !

अचानक संतान कुमार्गगामी बन जाय , धन आदि की आवक रुक जाय , घर में रोग के इलाज में अधिक धन खर्च होने लगे , कन्या के विवाह में बाधा आ रही हो , पति-पत्नी में क्लेश और झगड़ें का अनायास वातावरण बनने लगे,  अज्ञात रोग होने लगे , घर में अशांति और क्लेश का वातावरण बनें तो उन्हें ” श्राद्ध कर्म ” करना चाहिए !


वैसे भी किसी भी शुभ कर्म करने के पूर्व नांदी मुख श्राद्ध आदि करने का विधान शास्त्र में वर्णित है ! अतः श्राद्ध- तर्पण की क्रियाओं को जीवन का अभिन्न अंग मान लेना चाहिए और उसका पालन करना चाहिए ! एकक सुखी गृहस्थ जीवन जीने के लिए यह भी आवश्यक कर्तव्य कर्म है !

वैसे भी किसी भी शुभ कर्म करने के पूर्व नांदी मुख श्राद्ध आदि करने का विधान शास्त्र में वर्णित है ! अतः श्राद्ध- तर्पण की क्रियाओं को जीवन का अभिन्न अंग मान लेना चाहिए और उसका पालन करना चाहिए ! एकक सुखी गृहस्थ जीवन जीने के लिए यह भी आवश्यक कर्तव्य कर्म है !

नारायण बलि पूजन का महत्व 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

जो मोहग्रस्त प्रेत है, वे इस संसार से और सांसारिक सम्बन्ध में इतने मोह ग्रसित रहते है कि उनको मरने के बाद भी न घर छोडना है और न अपने लोगो का शरीर उनको लगता है कि मरने के बाद यही प्रेत जीवन सत्य है।

अपने ही सगे सम्बन्धियों के शरीरों मे प्रवेश किये रहते है और लोगो को परेशान करते रहते है। शरीर के साथ-2 मन, मस्तिष्क पर भी हावी रहते है।
वासनात्मक सुखभोग के लिए भी शरीरों मे प्रवेश करते है और पति पत्नी के बीच सुखमय जीवन को देख न पाने के कारण परस्पर कलह का कारण भी बन रहे है।
वर्तमान में बढते पारिवारिक कलह का एक सूक्ष्म कारण है और अवैध सम्बन्ध की ओर भी आकर्षित होने के पीछे भी इन प्रेतों की वासनात्मक भावना भी एक कारण है, जो इतनी अधिक सूक्ष्म होती है कि, बाधाग्रसित समझ भी नही पाते है।
ऐसे प्रेत अपनी मुक्ति भी नही चाहते है और ऐसे स्थान पर भी नही पहुंचने देते है, जहां इनका उध्दार हो सके। वे बाधाग्रसित व्यक्ति के मन मस्तिष्क को प्रभावित कर व्यर्थ के प्रपंचमय स्थानों पर भटकाते रहते है और शास्त्रोक्त पूजन और साधन से विमुख रखते है।
ऐसे प्रेतों का नारायण बलि जैसे पूजन के माध्यम से ही समाधान संभल है अथवा इनके प्रेत शरीरों को उग्र यज्ञ में भस्म किये जाएं।
बजरंग बाण एक प्रेतों पर एक प्रचण्ड प्रहार है। परन्तु नारायण बलि जैसे पूजन से ही स्थायी समाधान आता है।

पितृदोष एक जटिल दैवीय समस्या है। युग प्रभाव और धर्म की ग्लानि के कारण जनसमाज भारतीय संस्कार से विमुख हो जाने के कारण और शास्त्रोक्त पूजन पध्दतियां न होने के कारण अधिकांश जन सामान्य के पूर्वज प्रेतत्व को प्राप्त हुए है और अपने ही परिवार से जुडे सदस्यो के शरीरो मे, घरो मे सूक्ष्म रूप से रहते हैऔर उन्हे पीडा पहुचाते है, उनके जैसे ही विचअरधारा और मानसिकता से प्रभावितकरते है। उन प्रेत को प्रपात पूर्वजो के लिए शरीर मे घर मे निवास करने के कारण नकारात्मक प्रभाव उस परिवार के सदस्य पर बना रहता है, उस घर मे भी ऐसी ही स्थिती रहती है। इसलिए वहा परस्पर कलह , विद्वेष वैमनस्य, विघटन, विवाह विच्छेदन आर्थिक संकट विभिन्नप्रक्रार के रोग आदि भी होते रहते है , उनके उध्दार के लिए विधिवत नारायण बलि पूजन कराने पर वे दुर्गति को प्राप्त हुए पूर्वज प्रेत योनि से मुक्त हो जाते है। परन्तु पुनः नये प्रेत उसी शरीर अथवा घर मे प्रवेष कर जाते है। ऐसे भी कभी-2 नारायण बलि कराने पर भी श्रद्धालुओ का अनुकूल परिणाम दिखाई नही देता है। अतः श्रद्धेय स्वामी रुपेश्वरानंद जी महाराज के मार्गदर्शन अनुसार आश्रम मे जुडे श्रद्धालुओ के लिए जो अमावस्या पर पूजन कराया जाता है। उसे अब 11 अमावस्या पूजन के रूप अनिवार्य कर दिया गया है। प्रथम अमावस्या के बाद आगे की 10 अमावस्या का दक्षिणा शुल्क अल्प रखा जायेगा। जिससे श्रद्धालुओ को आर्थिक कष्ट न उठाना पडे।

स्वामी रुपेश्वरानंद आश्रम की ओर से श्रध्देय स्वामी जी के मार्गदर्शन में शास्त्रीय पध्दति से विद्वतजनों के द्वारा ” नारायण बलि ” कराने की व्यवस्था हरिद्वार जैसे तीर्थस्थल पर करा दी जाती है ! आश्रम की ओर विशेष शुभ मुहूर्त में यह कर्मकाण्ड समय -२ पर कराये जाते है !  प्रेत बाधा से ग्रसित किसी पीड़ित के पितृगण ही प्रेत योनी को प्राप्त होकर कष्ट पहंचा रहे हो , ऐसे में ” नारायण बलि ” कर्म से ही उनकी सद्गति और पीड़ित की समस्या का समाधान होता है ! वहां कोई अन्य तंत्र -मन्त्र आदि प्रयोग सफल नही होते है ! किसी के द्वारा किया गया तंत्र प्रयोग अथवा बाह्य दैवीय बाधा का निवारण मन्त्र प्रयोग . हवन आदि से समाधान किया जाता है , परन्तु पितृओं के निमित्त यह नियं लागु नही होता है ! उनके निमित उनकी सद्गति के लिए ही उपाय किया जाना चाहियें ! –  स्वामी रुपेश्वरानंद

" नारायण बलि " दक्षिणा शुल्क : 11,100 /-

( पूजन सामग्री और पुरोहित दक्षिणा सहित )

नारायण बलि पूजन उपरान्त ब्रह्मभोज कराना चाहिए ! इस हेतु 3100/- Rs. अतिरिक्त दक्षिणा जमा करे !

यह स्वेच्छिक है ! विशेष ब्रह्मभोज आश्रम की ओर से कराने हेतु आश्रम नंबर पर संपर्क कर सकते है ! 

दिनांक :   25 जून , 2025 (अमावस्या )

स्थान : ऑनलाइन तथा प्रत्यक्ष (प्रत्येक अमावस्या को स्वामी रुपेश्वरानंद आश्रम , वाराणसी एवं

हरिद्वार तीर्थस्थल में गंगा तट पर आश्रम की ओर से " नारायण बलि पूजन"  कराया जाता है !)

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महत्वपूर्ण सुचना :

नारायण बलि, आदि कर्मकांड हरिद्वार/ वाराणसी में स्वामी रुपेश्वरानंद आश्रम की ओर से विद्वान पुरोहितों के माध्यम से कराया जाता है ! वर्तमान समय और परिस्थिति को देखते हुए यह कर्मकांड संकल्प आदि के माध्यम से किया जाता है , यज्ञमान को इस कर्मकाण्ड में  प्रत्यक्ष भाग लेने की आवश्यकता नही होती है ! हमारे अनुभव में  इस प्रकार के पूजन से , संकल्प से दुर्गति अथवा प्रेत योनी को प्राप्त को आत्माओं की मुक्ति के यज्ञमानों द्वारा अनुभव प्रमाण सामने आये है ! अतः इस प्रकार से संकल्प द्वारा भी सद्गति होना अनुभवसिद्ध है ! इसलिये ऑनलाइन पंजीकरण से भी इस कर्मकाण्ड को किया जा रहा है ! इस विषय में जिनको शंका अथवा अश्रध्दा हो , वे पंजीकरण न करें ! अश्रध्दा और शंका के भाव से किये गए कर्म का फल शुभ नही होता ! स्वामी रुपेश्वरानंद जी के मार्गदर्शन में किये जा रहे अनुष्ठान , उपासना, कर्मकांड आदि से अनेक श्रध्दालुओं को लाभ हो रहे है और उसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी उपलब्ध है ! फिर भी आश्रम की ओर से किसी  को बाध्य नही किया जाता है और न ही  कोई गारंटी  दी जाती है ! केवल जिन्हें श्रध्दा हो , वे भी पंजीकरण करें ! आश्रम की ओर से भी पूर्ण विश्वास और विधि से कर्मकाण्ड संपन्न कराये जाते है ! पूजन कार्य नॉन - रिफंडएबल है  !

यज्ञमान बनने हेतु यज्ञमान पंजीकरण शुल्क जमा कर रसीद का स्क्रीनशॉट आश्रम वाट्सएप सेवा नंबर : 7607233230 पर भेजें अथवा यज्ञमान गूगल फॉर्म भरकर भेजें !

दक्षिणा जमा करने हेतु GOOGLE PAY / PHONE PE / PAYTM MO. NO .  : 981 77 77 108 

दक्षिणा जमा करने हेतु UPI ID  : 9817777108@hdfcbank 

अधिक जानकारी के लिए वाट्सएप नंबर +91 - 7607 233 230 पर WhatsApp मेसेज करें, अथवा phone कॉल करें !!!

बैंक खाता नाम :  SWAMI RUPESHWARANAND 

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