अध्यात्मिक साधना एवं पूजन सामग्री
|| त्रिकाल संध्या सेट एवं विधि ||

|| त्रिकाल संध्या क्या है और यह क्यों आवश्यक है ? ||
त्रिकाल संध्या एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है जिसे हिन्दू धर्म में विशेष महत्व दिया जाता है।
यह पूजा दिन के तीन समयों—त्रिकाल संध्या (प्रातः, मध्याह्न, और संध्याकाल)—में की जाती है। इन तीनों समयों में विशेष रूप से मंत्रों का जाप और ध्यान किया जाता है। त्रिकाल संध्या का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि, भगवान की भक्ति, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति प्राप्त करना होता है। यह अनुष्ठान सनातन धर्मं के प्रत्यक धर्मानुयायी करते थे, इसे पुनःस्थापित करने हेतु आश्रम प्रयत्नरत है! यह नियमित रूप से अपनी आत्मा के शुद्धिकरण के लिए किया जाता है !
|| धर्मशास्त्रों में त्रिकाल संध्या / संध्या वंदन ? ||
महाभारत शांति पर्व (67.15) :
"यस्तु संध्या प्रजाप्रभृतिं त्रिकालं श्रद्धया धर्मनिष्ठः। सर्वे ब्राह्मणसाध्याश्च यत्र निष्ठा सदा स्मिता॥"
सन्दर्भ : ( यह श्लोक महाभारत के शांतिपर्व का है। इसमें यह कहा गया है कि जो व्यक्ति त्रिकाल संध्या का पालन करता है और श्रद्धा और निष्ठा से भगवान की उपासना करता है, वह आत्मशुद्धि प्राप्त करता है और उसे धर्म, पुण्य और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। यह श्लोक त्रिकाल संध्या के पुण्य और प्रभाव को स्पष्ट करता है।)
महाभारत आदि पर्व (59.25) :
"संध्यावन्दनमात्रेण शुद्धिं प्राप्तं महात्मनां।
नष्टे पापे पुनर्भावं तदनन्तं नयेत्पुनः॥"
सन्दर्भ : ( यह श्लोक महाभारत के आदिपर्व से लिया गया है। इसमें संध्या वंदन के महत्व को बताया गया है, जिसमें व्यक्ति अपने पापों का नाश करता है और आत्मा को शुद्ध करता है। संध्या वंदन से पुनः जीवन में शांति, समृद्धि और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। यह श्लोक संध्या वंदन को एक महान धार्मिक कार्य मानता है।)
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