अध्यात्मिक साधना एवं पूजन सामग्री
|| पुराणोक्त तर्पण सेट एवं विधि ||

|| तर्पण क्या है और शास्त्रोक्त विधि से तर्पण क्यों आवश्यक है ? ||
तर्पण संस्कृत शब्द "तृप्ति" से बना है, जिसका अर्थ है "संतोष" या "तृप्त करना"। धार्मिक दृष्टि से, तर्पण एक वैदिक क्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने पितृओ (पूर्वजों), देवताओं, ऋषियों, और अन्य दिव्य शक्तियों को जल या अन्य समर्पण वस्तुओं के माध्यम से संतोष प्रदान करता है। यह पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। तर्पण से तृप्त होकर पितृ, ऋषि, देवी, देवता, आदि सभी श्रद्धलु पर कृपा कर उसका रक्षण करते है !
पितृ ऋण से मुक्ति का मार्ग है नित्य शास्त्रोक्त तर्पण क्रिया !
तर्पण न केवल पितरों की तृप्ति और संतोष के लिए है, अपितु इसे एक ऐसा कर्तव्य माना गया है जो परिवार की समृद्धि, धार्मिकता, और आत्मिक उन्नति में सहायक होता है। शास्त्रों के अनुसार, तर्पण विधि से करने पर पितृओ की कृपा प्राप्त होती है और वंशजों को सुख-शांति और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।
|| धर्मशास्त्रों में तर्पण ? ||
महाभारत अनुशासन पर्व (13.92.1) :
"तस्मात्तु विधिवज्जलदानं पितृदैवतं। पवित्रं परमं धर्म्यं श्राद्धं दानं प्रचक्षते।।"
अर्थ : ( पितृओ और देवताओं को जलदान करना परम पवित्र और धर्ममय कर्तव्य है। इसे सर्वोत्तम श्राद्ध और दान माना गया है। )
महाभारत अनुशासन पर्व (13.92.8) :
"यश्च श्राद्धं न कुर्वीत पितॄणां विधिपूर्वकम्। स पापमश्नुते लोके नरकं च गमिष्यति।।"
अर्थ : ( जो व्यक्ति पितृओ के लिए विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं करता, वह इस संसार में पाप का भोग करता है और मरने के बाद नर्क को प्राप्त होता है। )
महाभारत अनुशासन पर्व (13.92.10) :
"पितरस्तृप्यन्ति तस्मात् सदा स्वर्गे च गच्छति। श्राद्धकर्माणि कुर्वाणो नरः पुण्यं समश्नुते।।"
अर्थ : ( पितर तर्पण से संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं, जिससे करने वाला व्यक्ति पुण्य और स्वर्ग की प्राप्ति करता है। )
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